Wednesday, August 11, 2021

National Library Day : 12 Aug 2021 (Celebration of 129th Birth anniversary of Dr. S R Ranganathan Father of Indian Library Science)

 



डा. एस. आर. रंगनाथन का जन्म 12 अगस्त 1892 को शियाली, मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में हुआ था।

रंगनाथन के योगदान का पुस्तकालय विज्ञान पर विश्वव्यापी प्रभाव पड़ा। रंगनाथन की शिक्षा शियाली के हिन्दू हाई स्कूल, टीचर्स कॉलेज, सइदापेट में हुई थीं।

मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से उन्होंने 1913 और 1916 में गणित में बी. ए. और एम. ए. की उपाधि प्राप्त की।

1917 में उन्होंने गवर्नमेंट कॉलेज, कोयंबटूर और 1921-23 के दौरान प्रेज़िडेंसी। कॉलेज, मद्रास विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया।

डा. एस. आर. रंगनाथन को भारतीय पुस्तकालय विज्ञान के जनक कहा जाता है। 

Biography of Dr. S. R. Ranganathan

पूरा नाम- शियाली रामामृत रंगनाथन

जन्म- 12 अगस्त 1892, तमिलनाडु

निधन- 27 सितंबर 1972, बेंगलुरु

शिक्षा- मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज, यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन

माता-पिता- राममृता अय्यर, सीतलक्ष्मी

व्यवसाय- लेखक, अकादमिक, गणितज्ञ, पुस्तकालयाध्यक्ष


शैली- पुस्तकालय विज्ञान, प्रलेखन, सूचना विज्ञान

उल्लेखनीय काम -  पुस्तकालय वर्गीकरण के लिए प्रोलेगोमेना लाइब्रेरी साइंस के पांच कानून बृहदान्त्र वर्गीकरण रामानुजन: द मैन एंड द मैथमैटिशियन, वर्गीकृत सूची कोड: शब्दकोश सूची कोड के लिए अतिरिक्त नियमों के साथ पुस्तकालय प्रशासन, इंडियन लाइब्रेरी मैनिफेस्टो, लाइब्रेरी अथॉरिटीज़, लाइब्रेरियन और लाइब्रेरी वर्कर्स के लिए लाइब्रेरी मैनुअल वर्गीकरण और संचार, शीर्षक और कैनन; पांच कैटलॉग कोड का तुलनात्मक अध्ययन

पुरस्कार -  पद्म श्री 1957 में

Post - 1924 में रंगनाथन को मद्रास विश्वविद्यालय का पहला पुस्तकालयाध्यक्ष बनाया गया और इस पद की योग्यता। हासिल करने के लिए वह यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन में अध्ययन करने के लिए इंग्लैंड गए।

1925 से मद्रास में। उन्होंने यह काम पूरी लगन से शुरू किया और 1944 तक इस पद पर बने रहें। 1945-47 के दौरान उन्होंने बनारस (वर्तमान वाराणसी) हिन्दू विश्वविद्यालय में पुस्तकालाध्यक्ष और पुस्तकालय विज्ञान के प्राध्यापक के रूप में कार्य किया.

1947-54 के दौरान उन्होंने दिल्लीविश्वविद्यालय में पढ़ाया। 1954-57 के दौरान वह ज्यूरिख, स्विट्ज़रलैंड में शोध और लेखन में व्यस्त रहे। इसके बाद वह भारत लौट आए और 1959 तक विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में अतिथि प्राध्यापक रहे।

1962 में उन्होंने बंगलौर में प्रलेखन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किया और इसके प्रमुख बने और जीवनपर्यंत इससे जुड़े रहे।

1957 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री की उपाधि से सम्मानित किया। उनके जन्म दिन 12 अगस्त को पुस्तकालयाध्यक्ष दिवस (Librarian's Day) मनाया जाता है।

Contribution in Library and Information Science : रंगनाथन द्वारा 1928 ई. मे पुस्तकालय विज्ञान के पाँच सूत्रों (Five Law of Library) का प्रतिपादन किया गया, जिससे पुस्तकालय सेवा को नया आयाम प्रपट हुआ। पुस्तकालय विज्ञान के लिए रंगनाथन का योगदान प्रायः सभी क्षेत्रों मे रहा।

उन्होने वर्गीकरण (Library Classification), सूचिकरण (Library Catalog), प्रबंधन (Management)और अनुक्रमणीकरण (इंडेक्सिंग) सिद्धांत था। उनके कोलन क्लासिफ़िकेशन(CC: Colon Classification - 1933 ई.) ने ऐसी प्रणाली शुरू की, जिसे विश्व भर में व्यापक रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

इस पद्धति ने डेवी दशमलव वर्गीकरण जैसी पुरानी पद्धति के विकास को प्रभावित किया। सन 1934 में वर्गीकृत सूचिकरण पद्धति (CCC: Classified Cataloguing Code) का प्रकाशन हुआ उन्होने इसमे

अनुक्रमणीकरण प्रविष्टियों के लिए 'श्रृंखला अनुक्रमणीकरण' की तकनीक तैयार की।

उनकी फ़ाइव लॉज़ ऑफ़ लाइब्रेरी साइंस (1931) को पुस्तकालय सेवा के आदर्श एवं निर्णायक कथन के रूप में व्यापक रूप से स्वीकृत किया गया। उन्होंने राष्ट्रीय और कई राज्य स्तरीय पुस्तकालय प्रणालियों की योजनाएँ तैयार की।

कई पत्रिकाएँ स्थापित और संपादित की और कई व्यावसायिक समितियों में सक्रिय रहें। 

Listed below are some facts on the noted scholar that you must know:

  • He was born on August 9, 1982 in present day Tamil Nadu
  • India celebrates August 12 as Librarians Day in his honour
  • His most notable contributions to the field are his five laws of library science
  • His Colon Classification (1933) introduced a system that is widely used in research libraries around the world
  • In 1924 he was appointed first librarian of the University of Madras, and in order to fit himself for the post he travelled to England to study at University College, London
  • In 1957 he was elected an honorary member of the International Federation for Information and Documentation (FID) and was made a vice-president for life of the Library Association of Great Britain
  • In 1962, he founded and became head of the Documentation Research and Training Centre in Bangalore
  • He also drafted plans for a national and several state library systems
  • Prior to his occupation as Librarian, he was a teacher of Physics and Mathematics
  • In the year 1965, the Indian government honoured him with the title of national research professor in library science
  • The government of India conferred on him Padma Shree, the country's fourth highest civilian honour, in 1957.

प्रारम्भिक जीवन और शिक्षा

रंगनाथन का जन्म 12 अगस्त 1892 (उनके डॉक्यूमेंट के अनुसार) को शियाली, मद्रास वर्तमान चेन्नई में हुआ था। रंगनाथ की शिक्षा शियाली के हिन्दू हाई स्कूल, मद्रास क्रिश्चयन कॉलेज में (जहां उन्होने 1913 और 1916 में गणित में बी ए और एम ए की उपाधि प्राप्त की) और टीचर्स कॉलेज, सईदापेट्ट में हुयी। 1917 में वे गोवर्नमेंट कॉलेज, मंगलोर में नियुक्त किए गए। बाद में उन्होने 1920 में गोवर्नमेंट कॉलेज, कोयंबटूर और 1921-23 के दौरान प्रेजिडेंसी कॉलेज, मद्रास विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया। 1924 में उन्हें मद्रास विश्वविद्यालय का पहला पुस्तकालयाध्यक्ष बनाया गया और इस पद की योग्यता हासिल करने के लिए वे यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन में अध्ययन करने के लिए इंग्लैंड गए। परन्तु मन नही लगने पर वे वापस लौट आए 1925 से मद्रास में उन्होने यह काम पूरी लगन से शुरू किया और 1944 तक वे इस पद पर बने रहे। 1945-47 के दौरान उन्होने बनारस (वर्तमान वाराणसी) हिन्दू विश्वविद्यालय में पुस्तकालयाध्यक्ष और पुस्तकालय विज्ञान के प्राध्यापक के रूप में कार्य किया व 1947-54 के दौरान उन्होने दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाया। 1954-57 के दौरान वे ज्यूरिख, स्विट्जरलैंड में शोध और लेखन में व्यस्त रहे। इसके बाद वे भारत लौट आए और 1959 तक विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में अतिथि प्राध्यापक रहे। 1962 में उन्होने बंगलोर में प्रलेखन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किया और इसके प्रमुख बने और जीवनपर्यंत इससे जुड़े रहे। 1965 में भारत सरकार ने उन्हें पुस्तकालय विज्ञान में राष्ट्रीय शोध प्राध्यापक की उपाधि से सम्मानित किया।

पुस्तकालय सेवा में आदर्श भूमिका

सन् 1924 के पूर्व भारत में ग्रन्थालय व्यवसाय, लिपिक कार्य और घरों में ग्रन्थों तथा ग्रन्थ जैसी वस्तुओं को रखने का धन्धा मात्र ही समझा जाता था। यह सन् 1924 का समय था जब भारत के ग्रन्थालयी दृश्य पर डॉ॰ रंगनाथन का आगमन हुआ, वे प्रथम विश्वविद्यालयीय पुस्तकालयाध्यक्ष थे, जो मद्रास विश्वविद्यालय में नियुक्त किये गये। वे अपने जीवन के प्रथम 25 वर्षों के दौरान अपने को एकल-अनुसंधान में तल्लीन करके तथा शेष 25 वर्षों में दलअनुसंधान का संगठन करके भारत में ग्रन्थालयी दृश्य को पहले परिवर्तित किया। अपने पुस्तकालयी व्यवसाय के 48 वर्षों के दौरान, उन्होंने भारत में ग्रन्थालय व्यवसाय की उन्नति के लिए एक महान भूमिका निभाई. भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद ने डॉ॰ रंगनाथन के 71वें जन्म वर्षगाँठ के अवसर पर बधाई देते हुये लिखा, "डॉ॰ रंगनाथन ने न केवल मद्रास विश्व-विद्यालय ग्रन्थालय को संगठित और अपने को एक मौलिक विचारक की तरह प्रसिद्ध किया अपितु सम्पूर्ण रूप से देश में ग्रन्थालय चेतना उत्पन्न करने में साधक रहे। विगत 40 वर्षों के दौरान उसके कार्य और शिक्षा का ही परिणाम है कि भारत में ग्रन्थालय विज्ञान तथा ग्रन्थालय व्यवसाय उचित प्रतिष्ठा प्राप्त कर सका।

डॉ॰ रंगनाथन ने अत्यधिक सृजनात्मक उत्साह के साथ कार्य किया। उन्होंने स्वयं के विचारों को विकसित किया। उन्होंने बार-बार पुस्तकें व शोध-पत्र लिखे. उन्होंने जन-ग्रन्थालय विधेयकों का मसौदा (प्रारूप) तैयार किया और राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय क्रिया-कलापों को प्रोत्साहित किया तथा सहयोग दिया। निम्नलिखित विभिन्न व्यक्तिगत विशेषताएँ हैं जिससे डॉ॰ रंगनाथन ने भारत में पुस्तकालय व्यवसाय को प्रोत्साहित किया, जैसे: प्रजनक लेखक, वर्गीकरणाचार्य और वर्गीकरणकर्त्ता, सूचीकरणकर्त्ता, संगठनकर्त्ता, अध्यापक-शिक्षक-गुरू, दाता, सभापति, अध्यक्ष, सलाहकार, सदस्य, प्रलेखनाज्ञाता इत्यादि।